
भारत में मतदान प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के लिए मतदाताओं की उंगली पर लगाई जाने वाली अमिट स्याही का पहली बार इस्तेमाल 1962 के आम चुनावों में किया गया था। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि कोई व्यक्ति एक बार से ज़्यादा मतदान न कर सके। यह स्याही एक विशेष प्रकार की रासायनिक संरचना से बनाई जाती है, जिसका मुख्य घटक सिल्वर नाइट्रेट है। जब यह स्याही त्वचा के संपर्क में आती है और सूर्य की रोशनी (पराबैंगनी किरणों) के संपर्क में आती है, तो यह त्वचा में गहराई तक प्रवेश करती है और एक स्थायी दाग छोड़ जाती है। यह दाग कुछ दिनों से लेकर कई हफ़्तों तक रह सकता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह त्वचा कितनी बार पानी या साबुन के संपर्क में आती है।
इस स्याही को भारत की राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला और मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड द्वारा विकसित किया गया था और यह संस्था आज भी इसका उत्पादन करती है। इस स्याही का इस्तेमाल न केवल भारत में बल्कि कई अन्य देशों जैसे इंडोनेशिया, मलेशिया, दक्षिण अफ्रीका आदि में भी किया जाता है। अमिट स्याही भारतीय लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण पहचान बन गई है और यह सुनिश्चित करती है कि “एक व्यक्ति, एक वोट” के सिद्धांत को ठीक से लागू किया जाए।
देश में 18वीं लोकसभा के गठन के लिए 19 अप्रैल 2024 से चुनाव प्रक्रिया शुरू हो गई है। देश में कुल 543 लोकसभा सीटों के लिए सात चरणों में चुनाव हो रहे हैं। चुनाव प्रक्रिया में डुप्लिकेट मतपत्रों को डालने से रोकने के लिए मतदान केंद्र का उपयोग करते समय मतदाता की बाईं तर्जनी उंगली पर बैंगनी स्याही (अमिट स्याही) लगाई जाती है।
अमिट स्याही कैसे काम करती है?
- अमिट स्याही में सिल्वर नाइट्रेट होता है। यह त्वचा और नाखून के साथ प्रतिक्रिया करता है और एक गहरा दाग छोड़ता है जो कई दिनों तक त्वचा पर बना रह सकता है।
- जब पुरानी कोशिकाओं की जगह नई कोशिकाएँ ले लेती हैं, तो निशान मिट जाता है। नाखूनों पर यह तब तक बना रहता है जब तक नाखून बड़ा नहीं हो जाता।
- जब पुरानी कोशिकाओं की जगह नई कोशिकाएँ ले लेती हैं, तो निशान गायब हो जाता है। यह नाखून के बड़े होने तक नाखूनों पर बना रहता है।
- स्याही की 10 मिली की शीशी लगभग 700 लोगों की उंगलियों पर निशान बनाने के लिए पर्याप्त है।
- स्याही प्रकाश के प्रति संवेदनशील होती है और इसे सूर्य की किरणों के सीधे संपर्क से बचाने की आवश्यकता होती है। पहले इसका उपयोग भूरे रंग की स्याही के रूप में किया जाता था।
अमिट स्याही के मुख्य आपूर्तिकर्ता:-
- 1962 में चुनाव आयोग ने विधि मंत्रालय, राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला और राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम के साथ मिलकर भारत में चुनावों के लिए अमिट स्याही की आपूर्ति के लिए कर्नाटक सरकार के उपक्रम मैसूर पेंट्स के साथ एक समझौता किया था। तब से मैसूर पेंट्स इस स्याही का एकमात्र आपूर्तिकर्ता रहा है।
- चुनाव आयोग ने 1962 में भारतीय चुनावों के लिए अमिट स्याही की आपूर्ति के लिए कर्नाटक सरकार के उपक्रम मैसूर पेंट्स के साथ एक अनुबंध किया था।
बिंदुवार विवरण :-
- प्रथम प्रयोग :-
- भारत में अमिट स्याही का पहली बार प्रयोग 1962 के आम चुनाव में हुआ था।
- रासायनिक घटक :-
- अमिट स्याही में मुख्य रूप से सिल्वर नाइट्रेट (Silver Nitrate) होता है।
- इसका रासायनिक सूत्र: AgNO₃।
- प्रतिक्रिया और प्रभाव :-
- यह स्याही जब त्वचा से संपर्क करती है और सूरज की रोशनी (UV rays) में आती है, तो त्वचा में स्थायी काला निशान बनाती है।
- यह निशान कई दिनों या हफ्तों तक रह सकता है।
- लगाने का तरीका :-
- मतदान के समय स्याही को दाहिने हाथ की पहली ऊँगली पर, नाखून की जड़ के पास लगाया जाता है।
- इसका प्रयोग यह सुनिश्चित करता है कि कोई व्यक्ति दो बार मतदान न कर सके।
- उत्पादन संस्था :-
- भारत में इसका उत्पादन केवल Mysore Paints and Varnish Ltd. (कर्नाटक) करती है।
- यह कंपनी भारत सरकार के स्वामित्व में है।
- अन्य देशों में उपयोग :-
- भारत के अलावा इस स्याही का प्रयोग इंडोनेशिया, मलेशिया, अफगानिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की आदि देशों में भी होता है।
- प्रभाविता और उपयोगिता :-
- अमिट स्याही “एक व्यक्ति, एक मत” की अवधारणा को लागू करने का प्रभावी माध्यम है।
- यह चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करती है।
- कानूनी संरक्षण :-
- इसका प्रयोग भारतीय निर्वाचन आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुसार किया जाता है।
- इसका गलत इस्तेमाल दंडनीय अपराध है।