Arundhati Roy Memoir 2025: ‘Mother Mary Comes to Me’ का विमोचन

Arundhati Roy Memoir 2025: ‘Mother Mary Comes to Me’ का विमोचन 2 सितंबर 2025 को जारी हुआ। यह किताब उनके जीवन और खासकर उनकी मां मैरी रॉय से जुड़े रिश्तों और अनुभवों पर आधारित है। इसमें रॉय ने अपने बचपन, पारिवारिक संघर्षों, सामाजिक हकीकतों और साहित्यिक सफर की झलक पेश की है। इस आत्मकथात्मक संस्मरण में उन्होंने न सिर्फ निजी जीवन की जटिलताओं को उजागर किया है, बल्कि महिला अस्मिता, सामाजिक न्याय और मानवाधिकार जैसे मुद्दों को भी गहराई से सामने रखा है। यह उनकी पहली आत्मकथात्मक रचना है, जिसे साहित्यिक और सामाजिक दोनों ही नजरिए से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अपने विमोचन के साथ ही यह किताब साहित्य जगत और पाठकों के बीच चर्चा का विषय बन गई है और इसे अरुंधति रॉय के जीवन और विचारों को समझने की एक अनूठी खिड़की के रूप में देखा जा रहा है।

एक अस्थिर स्वभाव वाली माँ का चित्रण :-

कोट्टायम के पल्लीकूडम स्कूल की संस्थापक और एक प्रभावशाली सार्वजनिक हस्ती मैरी रॉय इस संस्मरण में सर्वव्यापी हैं। अरुंधति रॉय अपनी माँ को न केवल एक अभिभावक के रूप में, बल्कि एक प्रभावशाली शक्ति के रूप में भी प्रस्तुत करती हैं—भावनात्मक रूप से अस्थिर लेकिन बौद्धिक रूप से प्रतिभाशाली। वह अपनी माँ द्वारा गर्भपात कराने के प्रयासों और उसके बाद हुए अपमानजनक व्यवहार का निडरता से उल्लेख करते हुए लिखती हैं, “मैं उनके असफल गर्भपात के प्रयास का परिणाम हूँ।” फिर भी यह संस्मरण बदला नहीं है। यह गहरी जटिलताओं की कहानी है—एक बेटी जो चोट और प्रशंसा, दूरी और लगाव के बीच फँसी हुई है। जब दूरी हावी होती है, तब भी मैरी रॉय हमेशा मौजूद रहती हैं—जैसा कि रॉय लिखती हैं, “बस एक विचार की दूरी पर।”

अरुंधति रॉय के संस्मरण ‘मदर मैरी कम्स टू मी’ की विषय-वस्तु :-

  • मां-बेटी का संबंध :– अरुंधति रॉय और उनकी मां मैरी रॉय के बीच जटिल, गहरे और भावनात्मक रिश्तों का चित्रण।
  • बचपन की स्मृतियाँ :– लेखिका के बचपन के अनुभव, पारिवारिक माहौल और सामाजिक संघर्ष।
  • मैरी रॉय का संघर्ष :– महिलाओं के उत्तराधिकार अधिकार (Inheritance Rights) की लड़ाई में उनकी मां की भूमिका और प्रभाव।
  • स्त्री अस्मिता और स्वतंत्रता :– समाज में महिला की स्थिति, अधिकारों और स्वतंत्रता की खोज।
  • पारिवारिक संघर्ष :– तलाक, अकेलेपन और परिवार के भीतर तनावों का अनुभव।
  • सामाजिक न्याय :– समाज में असमानता, पितृसत्ता और वर्ग-जाति आधारित भेदभाव पर दृष्टि।
  • व्यक्तिगत संवेदनाएँ :– रॉय की भावनात्मक यात्रा, असुरक्षाएँ और आत्मचिंतन।
  • साहित्यिक दृष्टिकोण :– लेखन प्रक्रिया, उनके विचार और साहित्य के प्रति उनका दृष्टिकोण।
  • आत्मस्वीकार और आत्ममंथन :– खुद के जीवन और अनुभवों को स्वीकारने और उनसे सीखने का साहस।
  • व्यक्तित्व निर्माण :– कैसे माँ और सामाजिक परिस्थितियों ने अरुंधति रॉय के व्यक्तित्व और लेखन को गढ़ा।
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