
जनजातीय गौरव दिवस भारत के आदिवासी समुदायों की महान विरासत, संस्कृति और स्वतंत्रता संग्राम में उनके असाधारण योगदान का सम्मान करने के लिए हर साल 15 नवंबर को मनाया जाता है। यह दिन महान स्वतंत्रता सेनानी भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को समर्पित है, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ ‘उलगुलान’ आंदोलन चलाकर आदिवासी समाज में स्वाभिमान, अधिकार और स्वतंत्रता की भावना जगाई।
बिरसा मुंडा के संघर्ष को याद करने का अवसर है, बल्कि यह भारत की विविध जनजातीय परंपराओं—जैसे उनके नृत्य, संगीत, लोककला, जीवनशैली और प्रकृति संरक्षण—को सम्मानित करने का भी दिवस है। यह उत्सव हमें याद दिलाता है कि आदिवासी समाज भारतीय संस्कृति और इतिहास का अभिन्न हिस्सा है और उनके योगदान को हमेशा गर्व के साथ स्वीकार किया जाना चाहिए।
जनजातीय गौरव दिवस क्या है?
भारत के आदिवासी समाज की वीरता, सांस्कृतिक धरोहर और राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। यह दिवस हर साल 15 नवंबर को महान स्वतंत्रता सेनानी भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर मनाया जाता है। बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ ‘उलगुलान’ आंदोलन चलाकर आदिवासी समाज के अधिकारों, सम्मान और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया।
इस दिन देशभर में जनजातीय संस्कृति, कला, नृत्य, संगीत और परंपराओं को प्रदर्शित करने वाले कार्यक्रम आयोजित होते हैं। यह दिवस हमें भारतीय लोकतंत्र की विविधता और जनजातीय समुदायों के अनमोल योगदान की याद दिलाता है।
क्यों मनाया जाता है?
- भगवान बिरसा मुंडा के संघर्ष और बलिदान का सम्मान
- आदिवासी समाज के इतिहास, संस्कृति और परंपराओं को बढ़ावा देना
- समाज में आदिवासी समुदायों के अधिकारों और योगदान के प्रति जागरूकता फैलाना
- जनजातीय युवाओं में अपनी विरासत के प्रति गर्व की भावना विकसित करना
बिरसाइट आंदोलन :-
यह आंदोलन भगवान बिरसा मुंडा द्वारा चलाया गया एक महत्वपूर्ण धार्मिक–सामाजिक आंदोलन था, जिसने आदिवासी समाज में आत्मसम्मान, एकता और धार्मिक जागरण की नई चेतना पैदा की। यह आंदोलन मुंडा समुदाय के लोगों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय हुआ और बिरसा मुंडा को “धरती आबा” (Earth Father) के रूप में सम्मान दिलाया।
यह एक धार्मिक सुधार आंदोलन था, जिसे बिरसा मुंडा ने 1890 के दशक में मुंडा जनजाति के लोगों को सामाजिक बुराइयों, अत्याचार, कर्जदारी और जमींदारी प्रथा से मुक्त कराने के उद्देश्य से शुरू किया। इस आंदोलन ने आदिवासी समाज को अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान वापस पाने की प्रेरणा दी।
आंदोलन की प्रमुख विशेषताएँ :-
- अनुयायी स्वयं को “बिरसाइट” कहते थे।
- आंदोलन ने मुंडा धर्म (सारना) को मजबूत किया।
- इसमें प्रकृति पूजा, ईमानदारी, सामुदायिक जीवन और संयम पर बल दिया गया।
- बिरसा मुंडा को दिव्य शक्ति का रूप मानकर उनका संदेश फैलाया गया—
- “अबुआ डिसुम, अबुआ राज” (हमारा देश, हमारा राज)
- बाद में यही आंदोलन उलगुलान (महाआंदोलन) के लिए आधार बना।
उलगुलान आंदोलन :-
उलगुलान, जिसका अर्थ है महाआंदोलन, बिरसा मुंडा द्वारा चलाया गया एक सशक्त राजनीतिक–सामाजिक विद्रोह था। इसका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार, जमींदारी प्रथा और दमनकारी नीतियों के खिलाफ संगठित संघर्ष करना था। यह आंदोलन आदिवासी इतिहास में सबसे प्रभावी विद्रोहों में से एक माना जाता है।
कारण :-
- जंगल–जमीन से जुड़े अधिकार छिनना
- अंग्रेजों और मुखियाओं द्वारा बेगार (forced labour)
- ईसाई मिशनरियों के दबाव
- आदिवासी आजीविका पर प्रतिबंध
- जमींदारों द्वारा शोषण
मुंडा विद्रोह (Munda Rebellion 1899–1900) :-
यह एक सशस्त्र जनक्रांति थी जिसे बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश शासन और जमींदारों के खिलाफ नेतृत्व किया। यह विद्रोह 1899 में चरम पर पहुंचा और 1900 में अंग्रेजों ने इसे दबा दिया।
मुख्य विशेषताएँ :-
- वन कानूनों का विरोध
- खेती और जमीन के अधिकारों की मांग
- दमनकारी ताकतों पर सीधा प्रतिरोध
- सैनिकों और पुलिस ठिकानों पर हमला
परिणाम :-
- अंग्रेजों ने बिरसा की गिरफ्तारी की
- बाद में मुंडाओं के लिए कई कानूनों में सुधार हुए
- आदिवासी अधिकारों की कानूनी नींव मजबूत हुई
बिरसा मुंडा का संपूर्ण जीवन परिचय :-
भारत के महान जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और आध्यात्मिक नेता थे। वे आदिवासी समाज में “धरती आबा” (Earth Father) के नाम से पूजे जाते हैं। उन्होंने अपने नेतृत्व में धार्मिक सुधार, सामाजिक सुधार और राजनीतिक विद्रोह—तीनों को एक साथ दिशा दी।
- पूरा नाम: बिरसा मुंडा
- जन्म: 15 नवंबर 1875, उलिहातू (झारखंड)
- मृत्यु: 9 जून 1900, रांची जेल
- जाति/समुदाय: मुंडा जनजाति
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