महाराणा प्रताप जयंती : 09 मई

महाराणा प्रताप जयंती 09 मई को मनाई जाती है। वीर योद्धा महाराणा प्रताप की जयंती पूरे भारत में मनाई जाती है। इसको लेकर कई मत हैं। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार महाराणा प्रताप जयंती 9 मई को मनाई जाती है, वहीं हिन्दू पंचांग में बताई गई तिथि के अनुसार उनकी जयंती ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है।राजस्थान और भारत के इतिहास में महान योद्धा के योगदान का स्मरण कराती है। इस दिन, राजस्थान के लोग और सरकार विभिन्न उत्सवों और कार्यक्रमों के माध्यम से महाराणा प्रताप को श्रद्धांजलि देते हैं। महान योद्धा को सम्मानित करने के लिए, स्कूल और संस्थान व्याख्यान और बहस आयोजित करते हैं। महाराणा प्रताप को एक बहादुर और वीर योद्धा के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने अपने लोगों और उनकी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी।

महाराणा प्रताप :-

  • प्रताप का जन्म 09 मई, 1540 को राजस्थान के कुम्भलगढ़ में हुआ था।
  • राजपूत राजघराने में जन्‍म लेने वाले प्रताप उदय सिंह द्वितीय और महारानी जयवंता बाई के सबसे बड़े पुत्र थे।
  • वे एक महान पराक्रमी और युद्ध रणनीति कौशल में दक्ष थे।
  • महाराणा प्रताप ने मुगलों के बार-बार हुए हमलों से मेवाड़ की रक्षा की।
  • वह सिसोदिया के राजपूत कबीले से संबंधित थे और महाराणा उदय सिंह द्वितीय के सबसे बड़े पुत्र थे।
  • महाराणा प्रताप ने तेजी से अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहे मुगल सम्राट अकबर के सामने झुकने से इनकार कर दिया।
  • राजपूतों के सिसोदिया कबीले के सदस्य महाराणा प्रताप एक साहसी हिंदू राजपूत राजा थे
  • उन्हें एक सच्चा देशभक्त माना जाता है,
  • जिन्होंने देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया और हल्दीघाटी के युद्ध में मुगल सम्राट अकबर के साथ लड़े।
  • हर साल, उनकी जयंती हिंदू कैलेंडर के ज्येष्ठ शुक्ल चरण के तीसरे दिन पड़ती है, जिसे महाराणा प्रताप जयंती के रूप में मनाया जाता है।
  • प्रताप के पिता उदय सिंह मेवाड़ा वंश के शासक थे।
  • महाराणा प्रताप ने मुगलों के अतिक्रमणों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ी थीं।
  • महाराणा प्रताप के 24 भाई और 20 बहनें थीं।
  • प्रताप के सौतेले भाई ने उन्हें धोखा देते हुए अजमेर आकर अकबर से संधि कर ली थीं।
  • बचपन में महाराणा प्रताप को कीका नाम से पुकारा जाता था।
  • वह जब युद्ध के लिए जाते थे, तो 208 किलोग्राम की दो तलवारें, 72 किलोग्राम का कवच और 80 किलो के भाले लेकर जाते थे।

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