
कंचनजंगा, जो सिक्किम में स्थित है, भारत का एकमात्र यूनेस्को विश्व विरासत स्थल है जिसे ‘अच्छी (Good)’ श्रेणी में शामिल किया गया है। इसे यह दर्जा इसलिए मिला क्योंकि यह प्राकृतिक और सांस्कृतिक दोनों मानदंडों को पूरा करता है। 2016 में यूनेस्को द्वारा इसे विश्व विरासत स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। यह क्षेत्र न केवल हिमालय की अद्भुत जैव विविधता, हिमनदों और दुर्लभ जीव-जंतुओं का घर है, बल्कि सिक्किम की पारंपरिक मान्यताओं और धार्मिक आस्थाओं का केंद्र भी है।
स्थानीय लोग इसे ‘मायाल ल्यांग’ यानी पवित्र भूमि मानते हैं, जहाँ प्रकृति और संस्कृति का गहरा संबंध है। पर्यावरणीय दृष्टि से स्वस्थ स्थिति, कम मानवीय हस्तक्षेप और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के कारण यूनेस्को ने इसे ‘अच्छी’ श्रेणी में रखा है। यही कारण है कि कंचनजंगा भारत का सबसे अनोखा और संरक्षित विरासत स्थल माना जाता है।
‘अच्छी’ (Good) श्रेणी में क्यों रखा गया है?
यूनेस्को हर विश्व विरासत स्थल की स्थिति का मूल्यांकन “World Heritage Conservation Outlook” रिपोर्ट में करता है।
इसमें चार श्रेणियाँ होती हैं:-
- Very good (बहुत अच्छी)
- Good (अच्छी)
- Significant concern (गंभीर चिंता)
- Critical (अत्यधिक संकटग्रस्त)
- कंचनजंगा को ‘Good’ श्रेणी इसलिए दी गई क्योंकि –
- इसकी जैव विविधता (Biodiversity) और पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem) अभी भी स्वस्थ स्थिति में हैं।
- स्थानीय समुदायों की परंपरागत संस्कृति और धार्मिक मान्यताएँ अब भी इस क्षेत्र की रक्षा करती हैं।
- प्राकृतिक सौंदर्य, ग्लेशियर, नदियाँ, अद्वितीय वन्यजीव और सांस्कृतिक परंपराएँ एक संतुलित रूप में संरक्षित हैं।
- यहाँ पर्यावरणीय खतरे या मानवीय दबाव अपेक्षाकृत कम हैं।
सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व :-
- कंचनजंगा को स्थानीय लोग पवित्र पर्वत मानते हैं।
- सिक्किम के बौद्ध और लिंगद्रिक परंपराओं में इसे देवताओं का निवास कहा गया है।
- यह क्षेत्र ‘मायाल ल्यांग’ (पवित्र भूमि) की अवधारणा से जुड़ा है — जहाँ प्रकृति और संस्कृति का संगम होता है।
प्राकृतिक विशेषताएँ :-
- यहाँ पाए जाते हैं हिमनद (Glaciers), गहरे घाटियाँ (Valleys), दुर्लभ वनस्पति और जीव-जंतु, जैसे –
- स्नो लेपर्ड (हिम तेंदुआ)
- रेड पांडा
- हिमालयन ब्लू शीप
- यह क्षेत्र पूर्वी हिमालय जैव विविधता हॉटस्पॉट का हिस्सा है।
“Good” रेटिंग के कारण :-
- मानव हस्तक्षेप न्यूनतम :- दुर्गम स्थान होने के कारण शहरी या व्यावसायिक दबाव सीमित हैं।
- सामुदायिक सहभागिता :- वन अधिकारी स्थानीय ग्रामीणों के साथ मिलकर जैव-विविधता और आजीविका दोनों की रक्षा करते हैं।
- सतत विकास :- 2018 में बायोस्फीयर रिज़र्व घोषित होने के बाद बफर जोन में टिकाऊ खेती और संसाधन उपयोग की अनुमति दी गई।
- सीमापार संरक्षण :- नेपाल के कांचनजंघा संरक्षण क्षेत्र के साथ समन्वय से सीमा-पार पारिस्थितिक सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
- आपदा सहनशीलता :- 2024 की हिमनदी झील फटने की घटना में पूर्व-निर्धारित आपदा मानचित्रण के कारण न्यूनतम नुकसान हुआ।
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